भगवान हनुमान जी को लेकर धर्म ग्रंथों में कई तरह की कथा और कहानियों का जिक्र किया गया है. वैसे, आपमें भी हनुमान जी की जन्म कथा और उनकी बाल लीलाओं से जुड़ी कहानियां अवश्य सुनी होगी. बेशक वह खेल- खेल में सूर्य को फल समझकर निगलना हो या ऋषि- मुनियों को परेशान करने वाली कथा हो. क्या आप जानते है कि हनुमान जी के इस नटखटपन के कारण उन्हें एक बार श्राप भी मिला था. जी हाँ, एक बार ऐसा हुआ था. इस श्राप के अनुसार, वे अपनी सभी शक्तियों को भूल जाएंगे और इस श्राप से उन्हें मुक्ति तभी मिलेगी, जब उन्हें किसी और के द्वारा उनकी अद्वितीय शक्तियों का अहसास दिलाया जाएगा.
जानकारी के लिए बता दें कि इससे संबंधित रामायण काल में भी एक प्रसंग दिया गया है. इसमें सागर पार लंका में माता सीता का पता लगाने के लिए जामवंत, हनुमान जी को उनकी अद्वितीय शक्तियों का अहसास दिलाते हैं और फिर हनुमान जी को अपनी शक्तियां याद आ जाती है. वैसे, हनुमान जी की तरह ही माता अंजनी को भी एक बार नटखटपन और चंचलता के कारण ऋषि द्वारा श्राप मिला था. बता दें कि इस श्राप के कारण वह देवलोक की अप्सरा पुंजिकास्थली से वानरी बन गईं थी. आइए इस श्राप के बारे में विस्तार से जानते है…
इस कारण मिला था माता अंजनी को श्राप
माता अंजनी से जुड़ी एक पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमान जी की माता अंजनी पिछले जन्म में इंद्र देव की सभा में अप्सरा थीं. उस समय उनका नाम पुंजिकस्थला था. ऐसे जिक्र है कि उस समय वह काफी रूपवती थी, लेकिन उनका स्वभाव हनुमान जी की तरह ही नटखट और चंचल था. एक बार उन्होंने अपने इस नटखटपन से भूलवश के कारण श्रषि के तप में रूकावट डाल दी थी. कथा के अनुसार, पुंजिकस्थला ने ऋषि के ऊपर फल फेंक दिया था. इस कारण ऋषि की तपस्या भंग हो गई और वे क्रोध में आ गए. इसके चलते ऋषि ने पुंजिकस्थला को श्राप दिया कि जब उन्हें प्रेम होगा तब वह वानरी बन जाएंगी.
ऋषि ने माँ अंजनी को दिया यह आशीर्वाद
इसके बाद, पुंजिकस्थला ने ऋषि से अपनी भूल की क्षमा भी मांगी. इसी वजह से उस ऋषि को अंजनी पर दया आ गई. ऋषि ने कहा कि- वह अपना श्राप वापस तो नहीं ले सकते, लेकिन उन्होंने अपने श्राप में कुछ पंक्तियाँ जोड़ते हुए कहा कि, तुम्हारा वानरी रूप भी काफी तेजस्वी और आकर्षक होगा. वहीं, ऋषि ने उन्हें एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त होने का भी आशीर्वाद दिया. उन्होंने कहा कि इस तेजस्वी पुत्र के यश और कीर्ति के कारण पुंजिकस्थला यानी माता अंजनी का नाम युगों- युगों तक जाना जाएगा. फिर ऋषि के श्राप के कारण ही माता अंजनी को वानरराज केसरी से प्रेम हुआ और ऋषि के आशीर्वाद से ही उन्हें शिवजी के अंश के रूप में वीर हनुमान जी जैसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.
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माता अंजनी के वानरी बनने से जुड़ी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, हनुमान जी की माता अंजनी पिछले जन्म में देवलोक की अप्सरा थीं. उस समय उनका नाम पुंजिकास्थली था. एक बार ऋषि दुर्वासा किसी कार्य से इंद्र की सभा में गए थे. उस दौरान, पुंजिकास्थली बार- बार अपने रूप की वजह से पूरी सभा का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही थीं. इस वजह से ऋषि दुर्वासा को गुस्सा आ गया और उन्होंने पुंजिकास्थली को अगले जन्म में वानरी बनने श्राप दे दिया. हालांकि, बाद में ऋषि दुर्वासा ने दया दिखाते हुए पुंजिकास्थली से कहा कि तुम्हारे गर्भ से शिवजी के 11वें रूद्र अवतार का भी जन्म होगा. ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण ही पुंजिकास्थली का अगला जन्म विरज नामक वानर के घर हुआ और फिर उनका विवाह वानरराज केसरी से संपन्न हुआ.