हनुमान जी को श्री राम का परम भक्त माना जाता है. राम और रावण के बीच हुए युद्ध के दौरान भी हनुमान जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. मात्र वही ऐसे थे जिन्हें रावण की सेना अपने बस में नहीं कर पाई थी. श्री राम और रावण का युद्ध त्रेतायुग में हुआ था. युद्ध में विजयी होने के बाद श्री राम जब अयोध्या लौटे तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन कराया. इस यज्ञ करने के बाद अश्व को खुला छोड़ दिया जाता था तथा उसके पीछे उस राजा की सेना होती थी जिसने यज्ञ करवाया है.
लव और कुश से युद्ध करने गए थे हनुमान जी
जब यह अश्व दिग्विजय यात्रा पर जाता था तो स्थानीय लोग इसके वापस लौटने की प्रतीक्षा करते थे. जो कोई भी इस घोड़े को चुराने या फिर रोकने की कोशिश करता है उसके साथ राजा का युद्ध होता था. अगर यह अश्व खो जाता है तो दूसरे अश्व से यह क्रिया फिर से शुरु की जाती थी.
एकबार लव और कुश ने अश्वमेध के अश्व को रोककर श्रीराम को ललकार दिया था और तब श्री राम की तरफ से हनुमान जी युद्ध लड़ने आए थे. लव और कुश से युद्ध के दौरान हनुमानजी को पता चल गया था कि वे कौन हैं तो उन्होंने स्वयं को लव और कुश के हाथों बंदी बनवा लिया था.
शिवभक्त राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने श्रीराम के घोड़े को बना लिया बंदी
बाद में ज़ब लक्ष्मण व अन्य युद्ध करने गए और हार गए तो आखिर में श्रीराम आए थे. उसी तरह जब यज्ञ का घोड़ा देवपुर पहुंचा तो शिवभक्त राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने श्रीराम के घोड़े को रोककर उसे अपनी गिरफ्त में ले लिया. ऐसे में देवपुर और अयोध्या की सेना में युद्ध होना तो निश्चित था.
वीरमणि ने सुना कि श्रीराम के अनुज शत्रुघ्न की सेना युद्ध के लिए आगे बढ़ रही है, तों उन्होंने सशस्त्र सेना तैयार करने के लिए अपने प्रबल पराक्रमी सेनापति रिपुवार को आदेश दे दिया. स्वयं शिवभक्त राजा वीरमणि अपने वीरमणि के भाई वीरसिंह, भानजे बनमित्र तथा राजकुमार रुक्मांगद के साथ युद्ध के लिए रणभूमि की तरफ रवाना हो गए.
वीरभद्र ने काटा शत्रुघ्न के पुत्र पुष्कल का सिर
दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ और हनुमान जी ने सबको बुरी तरह पराजित कर दिया. आखिर में बजरंगबली ने वीरमणि को बेहोश कर दिया. शिवभक्त वीरमणि को शिवजी से वरदान प्राप्त था कि जब भी संकट आएगा तो मैं खुद तुम्हारी मदद करूंगा. ऐसे में भगवान अपने गणों के साथ युद्ध के मैदान में आ गए. गणों ने आते ही युद्ध भूमि में कोहराम मचा दिया.
वीरभद्र ने शत्रुघ्न के पुत्र पुष्कल का सिर काट दिया और शिवजी ने शत्रुघ्न पर हमला करके उसे घायल कर दिया. हनुमानजी ने दोनों को रथ में बिठाया और उन्हें सुरक्षा प्रदान की. इसके बाद, हनुमानजी सेना का मनोबल बढ़ाते हुए गर्जना करके आगे बढे और शिवजी के सामने जा खड़े हुए.
शिवजी और हनुमान जी में हुआ प्रलयकारी युद्ध
इसके बाद, दोनों में भयानक और प्रलयंकारी युद्ध हुआ.हनुमानजी रुद्रावतार थे और उन्हें सभी देवी देवताओं से वरदान प्राप्त था कि वे किसी भी कोई अस्त्र शस्त्र बंध नहीं सकते और ना ही पराजित हो सकते. इस वजह से भगवान शिव और हनुमानजी में प्रलंयंकारी युद्ध हुआ. दोनों की तरफ से हर प्रकार के दिव्यास्त्रों का प्रयोग किया जा रहा था.
हनुमानजी के पास भी शिवजी के हर दिव्यास्त्र का तोड़ उपलब्ध था. युद्ध हर पल और भी भयावह होता जा रहा था. यह देखकर भगवान राम वहां प्रकट हुए और उन्होंने हनुमानजी को समझाया कि आप मेरे ही विरुद्ध लड़ रहे हैं.
हनुमान जी के पराक्रम से खुश होकर शिव ने दिया मनचाहा वर
शिव ही राम है और राम ही शिव है. यह सुनकर हनुमानजी को शिव में ही राम नजर आने लगे. वे अपना युद्ध रोककर भगवान शिव और राम के आगे हाथ जोड़कर खड़े हो गए. हनुमानजी के पराक्रम को देखकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए और हनुमानजी को मनचाहा वर देने का निर्णय किया. इस प्रकार युद्ध समाप्त हुआ. इस युद्ध में श्रीराम और भगवान शंकर ही लीला कर रहें थे. भगवान युद्ध के माध्यम से बजरंगबली की परीक्षा ले रहे थे.