एक बार बजरंग बली और लक्ष्मण जी के बीच एक ऐसी बात पर बहस हो गई थी कि गुस्से में हनुमान जी ने अपना सीना चीर दिया था. आज के इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर वो कौन सी वजह थी जिसके कारण हनुमान जी ने सबके सामने अपना सीन चीर दिया था. इस बारे में आज हम पूरी कहानी जानेंगे.
दरअसल, यह उस दिन की बात है जब प्रभु श्री राम वानर सेना की सहायता से रावण पर विजय पाकर अयोध्या वापस लौट आए थे. तब उनके साथ माता सीता, भाई लक्ष्मण और परम भक्त बजरंगबली भी उनके साथ थे. अयोध्या आने के बाद प्रभु श्री राम का राज अभिषेक हुआ. इस खास मौके पर राज्यसभा में भारी भीड़ जमा थी. हर तरफ बस मर्यादा पुरुषोत्तम के जय- जय कर गंज रहे थे. हर कोई “जय श्री राम” के नारे लगा रहा था. इन जयकारो में सबसे आगे हनुमान जी थे क्योंकि बजरंगबली प्रभु श्री राम के परम भक्त है. राज अभिषेक के बाद, रघुकल नंदन राम जी ने सोचा कि इस शुभ अवसर पर युद्ध में पल- पल साथ निभाने वाले परम भक्त और भाइयों को कुछ भेंट दी जाए. इसके लिए सबसे पहले प्रभु श्री राम ने अपने गले से सोने के आभूषण निकाले और सुग्रीव, विभीषण और अन्य भाइयों को भेंट के तोर पर दे दिए. लेकिन, उन्हें यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो अपने परम भक्त और हर पल साथ निभाने वाले पवन पुत्र को क्या भेंट दे क्योंकि वह उन्हें कुछ खास तोहफा देना चाहते थे.
इस युद्ध में बजरंगबली ने अपनी जान की परवाह किए बिना उनका साथ निभाया था. तब माता सीता ने उन्हें एक खास तोहफा देने की सोचा. माता ने अपने गले से एक बेसकीमती चमचमाता हुआ मोतियों का हाल निकाला और हनुमान जी को भेंट कर दिया. अंजनी पुत्र घुटने पर माता के समीप बैठे और उन्होंने बड़े भावपूर्वक चुपचाप भेंट को स्वीकार कर लिया, लेकिन बजरंगबली माला को काफी ध्यान से देख रहे थे. माता को लगा कि निसंदेह पवन पुत्र को यह भेंट बहुत पसंद आई होगी. देखते ही देखते बजरंगबली राज्यसभा में ही मोतियों की माला तोड़ने लग गए. वह माला की हर एक मोती को ध्यान से देखते, फिर उसे जमीन पर फेक देते. यह देखकर हर कोई हैरान रह गया. सबके मन में यही सवाल आ रहा था कि एक ऐसा उपहार जो परमभक्त हनुमान को देवी सीता से मिला था, उसके साथ वो ऐसा कैसे कर सकते है. यह देखकर लक्ष्मण जी क्रोधित हो गए और उन्होंने प्रभु श्री राम से कहा- भैया यह पवन पुत्र हनुमान ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या उन्हें यह माला कीमती नहीं लगी, इस तरह तो वह भाभी मां के दिए हुए भेंट का अपमान कर रहे हैं. यह सुनकर भगवान राम ने कहा- लक्ष्मण जरूर इसकी कोई बड़ी वजह होगी. पवन पुत्र ऐसा किसी कारणवश्यक ही कर रहे होंगे. इसका पता तो उनसे ही बात करके चल पाएगा. ये सब देखकर माता सीता भी काफी हैरान थी.
जब काफी देर तक बजरंगबली माला के साथ ऐसा ही करते रहे तो माता सीता ने उसे पूछ ही लिया, उन्होंने हनुमान जी से कहा- कि आप ऐसा क्यों कर रहे हैं, आप इन कीमती रतन को यूं धूल में क्यों मिला रहे हैं? क्या आपको मेरा भेंट पसंद नहीं आया? यह सुनकर हनुमान जी ने नम आंखों से जवाब देते हुए कहा- मैं इस व्यवहार के लिए माफी चाहता हूं माता. मुझे इस रत्न के महत्व का भली- भांति एहसास है, लेकिन जिस चीज में भगवान श्री राम का नाम नहीं हो सकता, उसका मेरे जीवन में कोई महत्व नहीं है. इस माला में मुझे भगवान राम नहीं दिखे रहे हैं माता. यह माला मेरे लिए मूल्यवान नहीं है. उनकी बातें सुनते ही सभा में मौजूद लक्ष्मण जी क्रोधित हो गए और उन्होंने कहा- राम किसी के अन्दर कैसे हो सकता है? आपको माता सीता के दिए हुए उपहार का ऐसा अपमान नहीं करना चाहिए हनुमान. आपके शरीर पर तो भैया राम का नाम तक नहीं है तो आप इसके साथ क्यों चल रहे हैं? अगर ऐसा है तो आपको इसको भी त्याग देना चाहिए.
लक्ष्मण जी की बात सुनकर बजरंगबली क्रोधित नहीं हुए, उन्होंने बड़ी शालीनता से उनका जवाब देते हुए कहा- प्रभु श्री राम किसी के अंदर क्यों नहीं हो सकते, प्रभु तो हर जगह है. प्रभु मेरे अंदर, मेरे रोम- रोम में प्रभु बसते हैं. मेरी हर एक सांस में प्रभु श्री राम बसते हैं. हनुमान जी की ऐसी बातें सुनकर लक्ष्मण जी का क्रोध थोड़ा शांत हुआ और उन्होंने जवाब देते हुए कहा- आप जो भी वर्णन कर रहे हैं ये सब आप भावुक होकर कर रहे हैं क्योंकि भैया राम किसी के अंदर नहीं हो सकते हैं. ये सुनते ही हनुमान जी ने भी कह दिया कि आपको मेरी भक्ति पर संदेह नहीं करना चाहिए. मैं श्रीराम का परम भक्त हूँ. मैं आपको अपने अंदर श्री राम दिखा सकता हूं और ऐसा कहते ही बजरंगबली ने नाखूनों से अपना सीन चीर दिया. उनके हृदय में भगवान राम और माता सीता का निवास था. यह देखकर हर कोई हैरान रह गया. सभा में मौजूद सभी लोगों ने हनुमान जी के आगे हाथ जोड़ लिए.
सभी को यह भरोसा हो गया कि भगवान राम पवन पुत्र हनुमान के रोम- रोम में बसते हैं. बजरंगबली की परम भक्ति के आगे कोई कुछ भी नहीं है. बजरंगबली का इतना प्रेम देखकर प्रभु राम ने भी तुरंत उन्हें गले लगा लिया और सभा बजरंग बली और प्रभु श्री राम के जयकारो से गूंजने लगी. जिसके बाद, लक्ष्मण जी को भी वायु पुत्र की राम भक्ति का ज्ञान हो गया. तभी तो यह माना जाता रहा है कि जो भी कोई बजरंगबली को प्रसन्न करना चाहता है उसे उनका नहीं बल्कि राम- राम का नाम जपना चाहिए. इससे ही वो प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तो पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं.