असुर सम्राट लंकापति रावण छल से माता सीता का हरण कर ले जाता है, तो राम को उसपर बहुत क्रोध आता है और वे अपनी वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी करते हैं. राम ने कहा- मैं दशरथ पुत्र राम उस असुर रावण और उसकी समस्त राक्षसी सत्ता कि इट से इट बजा दूंगा, सीता का हरण कर रावण ने अपने विनाश को निमंत्रण दिया है. उसके उपरांत राम सेना जय श्री राम और हर-हर महादेव के नारे लगाते हुए लंका की तरफ प्रस्थान करती है. राम सहित सुग्रीव, अंगद, जामवंत, हनुमान, नल, नील और लक्ष्मण जैसे योद्धा सेना का नेतृत्व करते हैं. इस तरह लंका की तरफ कूच करते हुए राम सेना समुद्र किनारे आ पहुंचती है.
सुग्रीव समुद्र पार जाने की कोई युक्ति सोचो. प्रभु, रावण के अनुज विभिषण हमारे साथ है वह हमें इस बारे में बेहतर सुझाव दे सकते हैं. लक्षमण राम से कहते है- भ्राता आपके पास तो समुद्र को सुखाने का बल है आप समुद्र को सूखा क्यों नहीं देते. लक्ष्मण, जहां प्रेम से काम बन जाए वह बल का प्रयोग उचित नहीं होता. सबसे विचार- विमर्श करने के उपरांत राम 3 दिनों तक व्रत रख समुद्र की उपासना करते हैं और फिर समुद्र से रास्ता देने का निवेदन करते हैं. हे समुद्र देव में दशरथनंदन राम आपसे विनती करता हूं कि हमारी सेना को लंका जाने के लिए रास्ता प्रदान करें. राम बार-बार निवेदन करते हैं मगर समुद्र खामोशी से हिलोरे खाता रहता है और राम को कोई रास्ता नहीं देता है.
इतना निवेदन करने के बाद भी समुद्र हमें मार्ग देने को तैयार नहीं लक्ष्मण, हम तो आपसे पहले ही कह रहे थे भ्राता कि समुद्र को सुखा दिया जाए. अब क्या करेंगे प्रभु, प्रभु समुद्र देव यह अच्छा नहीं कर रहे, अब तो समुद्र को सुखाना ही पड़ेगा. यह कहकर राम क्रोध में तमतमाते हुए लक्ष्मण से कहते हैं लक्ष्मण समुद्र अभिनय की भाषा नहीं समझता अब तो इसे हमारे क्रोध को सहना ही पड़ेगा. हमारा ब्रह्मास्त्र दो, इसे एक अमोघ बाण से समुद्र पाताल तक सूख जाएगा. फिर राम क्रोध में भर के जैसे ही अमोघ बाण छोड़ने को तत्पर होते हैं तो समुद्र देव थर्रा करते हैं और विलम प्रकट होकर राम के चरणों में गिर जाते हैं. कहते है- प्रभु क्षमा, हमारी भूल को क्षमा करें और हमें सुखाने का निर्णय टाल दे. तो अब और क्या करें हम समुद्र देव. प्रभु, आप मेरे ऊपर एक सेतु का निर्माण कर सकते हैं. सेतु निर्माण की बात सुनकर राम सहज हो जाते हैं. सेतु का निर्माण इतनी जल्दी कैसे हो पाएगा.
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इसपर कहते है कि आपकी सेना में नल और नील यह काम आसानी से कर सकते हैं, यह दोनों भाई शिल्प कला में बहुत निपुण है. कहते है कि इन्हें एक ऋषि से श्राप मिला है, यह जो भी चीज समुद्र में डालेंगे वह कभी नहीं डूबेगी इसीलिए प्रभु यह जो पत्थर समुद्र में फेकेंगे, वह तैरने लगेगा. सेतु का सारा भार में खुद पर संभाल लूंगा. उसके बाद राम, नल और नील सेतु का काम शुरू कर देते है. यह बात सुनते आसपास के जीव-जंतुओं में भी खुशी की लहर दौड़ जाती है. जल की मछली. स्थल के पशु और पक्षी सब राम के लिए सेतु बांधने के काम में मदद करने के लिए विचलित हो उठते हैं. राम से आज्ञा मिलते ही समस्त वानर सेना समुद्र पर पुल बनाने में लग जाती है.
इस तरह समुद्र पर सेतु बांधते हुए 4 दिन बीत जाते हैं और सेतु लगभग पूरा होने को होता है. फिर इसकी सूचना जैसे ही लंका के राजा रावण को मिलती है तो वह विचलित हो उठता है. रावण को समझ आ जाता है कि जल्द ही उनका और राम का युद्ध होने वाला है. इस तरह पांचवा दिन आ जाता है और पांचवें दिन पुल बनाने का काम पूरा हो जाता है. काम के पूरा होते ही राम की समस्त वानर सेना खुशी से उछलने कूदने लगती है. फिर लंका की तरफ बढ़ने से पहले राम समुद्र के किनारे शिवलिंग की स्थापना करके उसकी उपासना करते हैं. इसके बाद, राम सहित पूरी सेना सेतु पर लंका की ओर चल पड़ती है.